आयुर्वेद के अनुसार हर एक इंसान के शरीर की एक ख़ास प्रकृति होती है जिसमें अधिकांश लोगों को अपने शरीर की प्रकृति के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं होता है जबकि आप अपनी आदतों और स्वभाव के आधार पर बहुत आसानी से अपनी प्रकृति जान सकते हैं। जैसे कि किसी काम को शुरु करने में आप बहुत देरी करते हैं या आप चाल बहुत धीमी और गंभीर है तो यह दर्शाता है कि आप कफ प्रकृति के हैं। इस लेख में हम आपको आपके कफ प्रकृति के लक्षणों से जुड़े कुछ रोगों और उनके उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं आयुर्वेदाचार्य ब्रह्मस्वरूप सिंह
सीने में कफ जमा होने से कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं। कफ यानी बलगम एक चिकना और पतला पदार्थ होता है, जिसे हमारा शरीर, शरीर की रक्षा और मुख्य गुहाओं के आंतरिक अंग को चिकनाई प्रदान करने के लिए उत्पन्न करता है। जब यह कफ गाढ़ा और ज्यादा चिकना हो जाता है, जो शरीर में कई तरह की परेशानियां उत्पन्न करने लगता है। धूम्रपान, संक्रमण, एलर्जी जैसे कई कारणों से कफ की परेशानी बढ़ती है। कफ की परेशानियों से राहत पाने के लिए आप कई तरह के उपचार अपनाए जा सकते हैं। लेकिन आयुर्वेद में मौजूद प्राकृतिक जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करना आपके लिए काफी लाभकारी हो सकता है। क्योंकि आयुर्वद में मौजूद जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से शरीर को नुकसान होने का खतरा कम रहता है।
कफ दोष क्या है? What is Cough Dosha?
कफ दोष, पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। ‘पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।
कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है।
कफ दोष के प्रकार : Types of Cough
शरीर में अलग स्थानों और कार्यों के आधार पर आयुर्वेद में कफ को पांच भागों में बांटा गया है।
- क्लेदक
- अवलम्बक
- बोधक
- तर्पक
- श्लेषक
आयुर्वेद में कफ दोष से होने वाले रोगों की संख्या करीब 20 मानी गयी है।
कफ के गुण :
कफ भारी, ठंडा, चिकना, मीठा, स्थिर और चिपचिपा होता है। यही इसके स्वाभाविक गुण हैं। इसके अलावा कफ धीमा और गीला होता है। रंगों की बात करें तो कफ का रंग सफ़ेद और स्वाद मीठा होता है। किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति का पता चलता है।
कफ प्रकृति की विशेषताएं : Features of Cough Nature
कफ दोष के गुणों के आधार पर ही कफ प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं। हर एक दोष का अपना एक विशिष्ट प्रभाव है। जैसे कि भारीपन के कारण ही कफ प्रकृति वाले लोगों की चाल धीमी होती है। शीतलता गुण के कारण उन्हें भूख, प्यास, गर्मी कम लगती है और पसीना कम निकलता है। कोमलता और चिकनाई के कारण पित्त प्रकृति वाले लोग गोरे और सुन्दर होते हैं। किसी भी काम को शुरू करने में देरी या आलस आना, स्थिरता वाले गुण के कारण होता है।
कफ प्रकृति वाले लोगों का शरीर मांसल और सुडौल होता है। इसके अलावा वीर्य की अधिकता भी कफ प्रकृति वाले लोगों का लक्षण है।
आयुर्वेद में खांसी (Cough) क्या है?
आयुर्वेद में खांसी को कास (Kasa) कहा जाता है। आयुर्वेदिक विज्ञान के अनुसार, खांसी वात दोष के बढ़ने की वजह से होती है। यह दोष सूखी खांसी या कफ वाली खांसी दोनों की वजह बनता है। खांसी के आयुर्वेदिक उपचार में दोष के उचित निदान की आवश्यकता होती है। इसके अलावा धूल, धुएं या अत्यधिक शारीरिक व्यायाम (physical workout) के कारण, ड्राय और बासी खाना, अन्नप्रणाली (Esophagus) के अलावा असामान्य जगह में खाद्य पदार्थों का प्रवेश भी खांसी का कारण बन सकते हैं।
ईटियोलॉजिकल फैक्टर्स के कारण कफ उत्तेजित हो जाता है और चेस्ट में वात की गति के लिए रुकावट पैदा करता है। जो प्राण वात (Prana vata) और उदान वात (Udana vata) को बढ़ाता है। नतीजन, वात शरीर में ऊपर की दिशा में बढ़ता हुआ ऊपरी हिस्से में सर्क्युलेशन चैनलों को हटा देता है, जिससे गले और चेस्ट में कफ बढ़ जाता है। खांसी का आयुर्वेदिक इलाज या कफ का आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for cough) वात को कम करने और रोग को पैदा करने वाली (Pathogenesis) लाइन को तोड़ता है, जिससे खांसी होती है।
कफ बढ़ने के कारण :
मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रुप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसलिए इन समयों में विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है। आइये जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं।
- मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन
- मांस-मछली का अधिक सेवन
- तिल से बनी चीजें, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन
- फ्रिज का ठंडा पानी पीना
- आलसी स्वभाव और रोजाना व्यायाम ना करना
- दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू आदि का सेवन
कफ बढ़ जाने के लक्षण :
शरीर में कफ दोष बढ़ जाने पर कुछ ख़ास तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। आइये कुछ प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।
- हमेशा सुस्ती रहना, ज्यादा नींद आना
- शरीर में भारीपन
- मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन
- शरीर में गीलापन महसूस होना
- शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना
- आंखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव
- अंगों में ढीलापन
- सांस की तकलीफ और खांसी
- डिप्रेशन
कफ को संतुलित करने के उपाय :
इसके लिए सबसे पहले उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से शरीर में कफ बढ़ गया है। कफ को संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव करने होंगे। आइये सबसे पहले खानपान से जुड़े बदलावों के बारे में बात करते हैं।
कफ को संतुलित करने के लिए क्या खाएं : कफ प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।
- बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा ब्राउन राइस ,राई आदि अनाजों का सेवन करें।
- सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि का सेवन करें।
- जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें।
- छाछ और पनीर का सेवन करें।
- तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
- सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।
- नमक का सेवन कम करें।
- पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें।
कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
- मैदे और इससे बनी चीजों का सेवन ना करें।
- एवोकैड़ो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।
- केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।
जीवनशैली में बदलाव : खानपान में बदलाव के साथ साथ कफ को कम करने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना भी जरूरी है। आइये जाने हैं बढे हुए कफ दोष को कम करने के लिए क्या करना चाहिए।
- पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें
- गुनगुने पानी से नहायें।
- रोजाना कुछ देर धूप में टहलें।
- रोजाना व्यायाम करें जैसे कि : दौड़ना, ऊँची व लम्बी कूद, कुश्ती, तेजी से टहलना, तैरना आदि।
- गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
- बहुत अधिक चिंता ना करें।
- देर रात तक जागें
- रोजाना की दिनचर्या में बदलाव लायें
- ज्यादा आराम पसंद जिंदगी ना बिताएं बल्कि कुछ ना कुछ करते रहें।
कफ दूर करने के घरेलू उपचार:
1. तुलसी पत्ता और अदरख
तुलसी और अदरख कफ के उपचार के लिए सार्वाधिक लोकप्रिय औषधियों में से एक हैं. इसका प्रमुख कारण है इससे तुरंत राहत मिलना. इसका लाभ लेने के लिए आपको एक कप गर्म पानी में तुलसी की पांच-सात पत्तियों को डालकर उसमें अदरक का एक टुकडालें और उसे कुछ देर तक उबालें. फिर जब पानी आधा रह जाए तो इस काढ़े को चाय की तरह धीरे-धीरे पिएं. ये कफ के लिए काफी कारगर है. इसके अलावा आप सर्दी के ठीक न होने तक सुबह-शाम अदरक के साथ शहद भी चूस सकते हैं.
2. गुनगुने पानी से गलाला करना
आपकी नाक बंद होने पर या गले में खराश होने पर आप गुनगुने पानी में चुटकी भर नमक डालकर गलाला करने का उपचार भी आजमा सकते हैं. ये एक सुलभ और प्रभावी तरीका है क्योंकि इससे विषाणुओं का प्रकोप कम होता है.
3. काली मिर्च और हिंग
कफ के दौरान आयुर्वेदिक में आप काली मिर्च और हिंग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आप 3 – 4 काली मिर्च को पीसकर उसमें थोड़ी पीसी हुई हिंग मिलाएं और फिर इसमें एक छोटी कली गुड़ की डालकर इसकी गोली बना लें. इन गोलियों को आप सुबह शाम नियमित रूप से लें.
4. आजवाईन
आजवाइन का इस्तेमाल भी आयुर्वेदिक के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए आपको नियमित रूप से सुबह शाम आजवाइन को गुनगुने पानी के साथ लेना होगा. इससे कफ में काफी राहत मिलता है.
5. जीरा, इलायची, दालचीनी और काली मिर्च
कफ के दौरान जब आपकी नाक बंद हो जाती है तब आप जीरा, इलायची, दालचीनी और काली मिर्च की एक समान मात्रा लेकर किसी स्वच्छ सूती कपड़े में बाँध कर सूंघने से काफी राहत मिलती है. इसे बार-बार सूंघने से आपको छींक आएगी और आपकी बंद नाक खुल जाएगी. साथ इनका काढ़ा बनाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
6. दालचीनी और जायफल
दालचीनी और जायफल के संयुक्त इस्तेमाल से भी आप कफ को दूर कर सकते हैं. इसके लिए आपको दालचीनी और जायफल की एक समान मात्रा को पिस कर इसे दिन में दो बार खाना होगा. इससे आपको काफी राहत मिल सकती है.
7. लौंग और गेहूं की भूसी
यदि आप लौंग और गेहूं की भूसी का इस्तेमाल करना चाहें तो इसके लिए आपको 5 लौंग और 10-15 ग्राम गेहूं की में थोड़ा नमक मिलाकर पानी में उबालें. अब इस काढ़े का सेवन करें. इससे भी आपको लाभ मिलेगा.
8. हरिद्रा यानी हल्दी
कफ या बलगम की परेशानी को दूर करने के लिए हल्दी का इस्तेमाल आपके लिए काफी लाभकारी हो सकता है। हल्दी का इस्तेमाल भारतीय किचन में काफी लंबे समय से मसालों के रूप में किया जा रहा है। इसके अलावा हल्दी का आयुर्वेद में भी काफी महत्व है। इसके इस्तेमाल से बलगम की परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही यह बैक्टीरियल संक्रमण को दूर करने में प्रभावी हो सकता है। अगर आप कफ से राहत पाना चाहते हैं, तो नियमित रूप से हल्दी का पानी या फिर हल्दी का काढ़ा बनाकर पिएं। इससे काफी लाभ मिलेगा।
9. मुलेठी है लाभकारी
मुलेठी स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह कफ की परेशानी को दूर करने में प्रभावी हो सकता है। आयुर्वेद में मुलेठी को शक्तिवर्धक और उर्जादायक माना जाता है। इसके सेवन से गले में खराश, सूजन जैसी समस्याओं को दूर किया जा सकता है। कफ की परेशानी होने पर मुलेठी के पाउडर में थोड़ा घी डालकर दूध के साथ उबालकर काढ़ा तैयार कर लें। अ इसे दिन में दो बार पिएं। इससे कफ की परेशानी से राहत पाया जा सकता है।
10. कफ में पिप्पली का सेवन बहुत लाभकारी
पिप्पली में दर्द निवारक गुण होता है, जो गले में खराश और दर्द से राहत दिला सकता है। कफ की परेशानी होने पर इसका सेवन आप अर्क या पाउडर के रूप में कर सकते हैं। इसके अलावा पिप्पली तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य के निर्देशानुसार अगर आप इसका सेवन करते हैं, तो आपको अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
11. वच का प्रयोग कफ को दूर करने के लिए
वच आयुर्वेद की तीखी जड़ी-बूटियों में से एक है। इसके इस्तेमाल से आपके शरीर को भरपूर रूप से उर्जा प्रपात होती है। साथ ही यह आपके शरीर से कफ दोष को दूर करने में प्रभावी हो सकता है। कफ की परेशानियों को दूर करने के लिए वच का सेवन आप कई तरह से कर सकते हैं। इसके लिए वच के पाउडर को दूध में मिलाकर पिएं। इसके अलावा वच का काढ़ा भी पी सकते हैं।
अगर आप पूरी तरह से अपना कफ दोष ठीक करना चाहते हैं तो इस प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज का इस्तेमाल करें जो हर तरह के कफ दोष को ठीक करने में रामवाण का काम करता है.
आयुर्वेदाचार्य ब्रह्मस्वरूप सिंह द्वारा तैयार किया गया प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज जिसे हजारों लोगों ने अपनाया और इसका फायदा उठाया. इसके लिए आपको
- तुलसी
- अदरक
- काली मिर्च
- हींग
- अजवाईन
- जीरा
- हरी इलायची
- दालचीनी
- छोटी पीपल
- जायफल
- लोंग
- हल्दी
- मुलेठी
- वच (Sweet flag, घोरवच)
इन सबको आप बरकार मात्रा में लेकर एक पाउडर बनाकर रख लें, हर रोज सुबह साम एक गिलास पानी में एक चम्मच यही पाऊडर लेना है और इसको तबतक उबालना है जबतक यह एक गिलास पानी का आधा गिलास न रह जाये. इसके बाद इस पानी को छानकर ठंडा करके हल्का गुना गुना कर लें और इसमें एक नींबू निचोड़ दें साथ ही एक चम्मच शुद्ध शहद मिला लें और सुबह खाना खाने से पहले पीना है और साम को ठीक उसी तरह बनाकर सोने से पहले पीना है.
इस प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज को लगातार 15 से 20 दिन करो और असर अपने आप से खुद देखो. अगर आप इस उपचार को एक महीने तक लगातार करलो तो आपके शरीर से बहुत सी बीमारियां ठीक हो सकती हैं.
यह प्राचीन आयुर्वेदिक उपचार हजारों लोगों ने अपनाकर इसका फायदा उठाया है, आप भी इसका इस्तेमाल करें और इसका लाभ उठायें
खांसी की आयुर्वेदिक इलाज : दवा
सीतोपालादि चूर्ण (Sitopaladi Churna) : एक से तीन ग्राम चूर्ण को चार से छह ग्राम शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से खांसी में राहत में मिलती है।
कर्पूरादि चूर्ण (Karpuradi Churna) : 300 मिलीग्राम से एक ग्राम चूर्ण को मिश्री के साथ लें। यह सूखी खांसी की आयुर्वेदिक दवा काफी प्रभावी है।
बृहत पंच मूला क्वाथ (Brihat Pancha Mula Kvatha) : 14 से 28 मिली क्वाथ में 0.5 ग्राम के साथ पिप्पली का चूर्ण मिलाकर लिया जाना चाहिए।
गोदन्ती भस्म (Godanti Bhasma) : 120 से 150 मिलीग्राम भस्म को शहद के बराबर भाग के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से खांसी से राहत मिलती है।
प्रवाल भस्म (Pravala Bhasma) : यह चूर्ण 60 से 120 मिलीग्राम में चार से छह ग्राम शहद के साथ लिया जाता है।
पिप्पलादि रसायन (Pippalyadi Rasayana) : खाना खाने से पहले तीन से छह ग्राम चूर्ण की मात्रा को 50 से 100 मिलीलीटर उबले हुए पानी से दिन में दो बार लेने से खांसी में आराम मिलता है।
वासावलेह (Vasavaleha) : 12 से 24 ग्राम दिन में दो बार लेने से हर तरह की खांसी ठीक होती है।
वासरिष्ठा (Vasarishta) : दोपहर या रात के खाने के बाद रोजाना तीन बार 15 से 30 मिली मात्रा लेने से खांसी ठीक होती है।
कांटाकरी क्वाथ (Kantakari Kvatha) : 14 से 28 मिली क्वाथ को 120 मिलीग्राम पिप्पली के चूर्ण के साथ दिन में दो बार लेने से काली खांसी (whooping cough) में लाभ मिलता है।
तेलेसी चूर्ण (Taleesadi churna) : खांसी की आयुर्वेदिक दवा तेलेसी चूर्ण की दो से तीन ग्राम मात्रा को शहद में मिलाकर लेने से लाभ होता है।
लवंगादि वटी (Lavaṅgadi Vaṭi), शवसनंद गुईका (Shvsananda Guṭika), इलादि वटी (Eladi Vaṭi), कांताकार्यवलेहा (Kaṇṭakaryavaleha), थालीश पत्रादि वटकम (Thaleesh pathradi vatakam) जैसी और भी खांसी की आयुर्वेदिक दवाएं हैं जिनका इस्तेमाल खांसी के उपचार में किया जाता है। ऊपर बताई गई दवाइयां ऐसे ही न लें। खांसी की आयुर्वेदिक दवा के लिए किसी योग्य आयुर्वेद डॉक्टर से परामर्श करके ही लें।
कफ की परेशानियों को दुर करने के लिए आयुर्वेद की इन जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, ध्यान रखें कि इन जड़ी-बूटियों का अधिक मात्रा में इस्तेमाल न करें। वहीं, अगर आप पहली बार इन जड़ी-बूटी का सेवन कर रहे हैं, तो डॉक्टर से उचित परामर्श लें। ताकि इससे होने वाले साइड-इफेक्ट से बचा जा सके।
Discussion about this post