गुर्दे की पथरी या किडनी स्टोन आजकल बहुत आम बात हो गयी है, छोटे से लेकर बड़े तक हर उम्र के लोगों में आजकल यह बहुत देखने को मिल रही है. इसका दर्द भी बहुत असहनीय होता है. अगर हम मेडिकल साइंस की बात करें तो इसका उपचार सिर्फ ऑपरेशन ही है लेकिन अगर हम प्राचीन आयुर्वेद की बात करें तो इसका इलाज संभव है. प्राचीन आयुर्वेद में ऐसी बहुत सी औषधियां हैं जिनके उपचार से किडनी स्टोन और गॉलब्लेडर स्टोन दोनों का इलाज किया जा सकता है।
गुर्दे की पथरी या किडनी स्टोन (Kidney Stones) को नेफ्रोलिथिआरीस (Nephrolithiaris) भी कहते है। गुर्दे की पथरी एक क्रिस्टलीय खनिज पदार्थ है जो गुर्दे या मूत्र पथ में कही भी हो सकती है। एक छोटा पत्थर बिना लक्षण के मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है। लेकिन अगर पथरी 5 एमएम से ज्यादा का हो तो यह मूत्रमार्ग में रुकावट पैदा करता है, जिससे परिणामस्वरूप दर्द और उल्टी जैसे लक्षण उत्पन्न होते है। विभिन्न कारक इन पत्थरों के विकास के जोखिम का बढ़ा सकते है। आयुर्वेदाचार्य ब्रह्मस्वरूप सिंह
किडनी स्टोन या गुर्दे की पथरी क्या है (What is Kidney Stone)
आयुर्वेद में पथरी (Calculi) को अश्मरी कहा गया है, इसमें वात दोष मूत्राशय में आये हुए शुक्र सहित मूत्र को या पित्त के साथ कफ को सूखा देता है तब पथरी बन जाती है। जब यह अश्मरी मूत्र मार्ग में आ जाती है तब मूत्र त्याग में अत्यधिक रुकावट एवं असहनीय पीड़ा उत्पन्न करती है। इसके कारण अंडकोष से लेकर लिङ्ग मूत्राशय एवं पार्श्व में पीड़ा होती है। वात के कारण जब यह अश्मरी टुकड़े-टुकड़े होकर मूत्र मार्ग से निकलती है तब इसे आयुर्वेद में शर्करा कहा गया है।
किडनी स्टोन चार प्रकार के होते हैं-
- कैल्शियम स्टोन
- यूरिक एसिड स्टोन
- स्ट्रूविटा स्टोन
- सिस्टिन स्टोन
इनमें से कैल्शियम स्टोन और यूरिक एसिड स्टोन आम तौर पर सबसे ज्यादा पाये जाते हैं।
किडनी स्टोन या गुर्दे में पथरी क्यों होती है (Causes of Kidney Stone)
आजकल गुर्दे में पथरी (Calculi) होना जैसा सामान्य हो गया है। इसके लक्षण नजर आते ही तुरंत पथरी का इलाज (Pathri ka ilaj) करना चाहिए. आइये जानते हैं किडनी की पथरी किन कारणों से होती है।
- कम मात्रा में पानी पीना इसका एक मुख्य कारण है
- यूरीन में केमिकल की अधिकता
- शरीर में मिनरल्स की कमी
- डिहाइड्रेशन
- विटामिन डी की अधिकता
- जंक फूड का अति सेवन।
गुर्दे की पथरी के लक्षण (Symptoms of Kidney Stone)
वैसे तो गुर्दे में पथरी होने से दर्द होता है लेकिन इसके साथ ही कई और लक्षण होते हैं-
- मूत्र त्याग के समय दर्द
- पीठ के निचले हिस्से, पेट में दर्द और ऐंठन
- मूत्र में रक्त आना
- जी मिचलाना और उल्टी आना
- दुर्गन्धयुक्त पेशाब
- बार-बार पेशाब आना परंतु खुलकर पेशाब न आना
- बुखार, पसीना निकलना आदि
पित्ताशय की पथरी (गॉल ब्लैडर स्टोन) Gallbladder Stone
पित्त की पथरी यानि गॉलस्टोन छोटे पत्थर होते हैं, जो पित्ताशय की थैली में बनते हैं। पित्त की पथरी लीवर के नीचे होती है। पित्त की पथरी बहुत दर्दनाक हो सकता है यदि इसका समय पर इलाज (pit ki pathri ka ilaj) नहीं किया गया तो इसे निकालने के लिए एक ऑपरेशन की आवश्यकता हो सकती है। आपको बता दें कि पित्ताशय में जब कोलेस्ट्रोल जमने लगता है या फिर सख्त होने लगता है, तो हमें अक्सर पथरी की शिकायत हो जाती है। ऐसे में रोगी को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है और साथ में खाना पचने में भी दिक्कत आने लगती है।
लीवर और गॉल ब्लैडर के बीच बाइल डक्ट नामक एक छोटी-सी नली होती है, जिसके माध्यम से यह पित्त को गॉलब्लैडर तक पहुंचाता है। जब व्यक्ति के शरीर में भोजन जाता है तो यह ब्लैडर पित्त को पिचकारी की तरह खींच कर उसे छोटी आंत के ऊपरी हिस्से में भेज देता है, जिसे डुओडेनियम कहा जाता है। इससे पाचन क्रिया की शुरुआत हो जाती है।
पित्ताशय की पथरी क्या होता है (What is Gall Bladder Stone)
पाचन के लिए आवश्यक एंजाइम को सुरक्षित रखने वाले महत्वपूर्ण अंग यानी पित्ताशय (pittashay)से जुड़ी सबसे प्रमुख समस्या यह कि इसमें स्टोन बनने की आशंका बहुत अधिक होती है, जिन्हें गॉलस्टोन कहा जाता है। दरअसल जब गॉलब्लैडर में तरल पदार्थ की मात्रा सूखने लगती है तो उसमें मौजूद चीनी-नमक और अन्य माइक्रोन्यूट्रिएट तत्व एक साथ जमा होकर छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें गॉलस्टोन्स कहा जाता है।
कभी-कभी पित्ताशय में कोलेस्ट्रोल, बिलीरुबिन और पित्त लवणों का जमाव हो जाता है। 80 प्रतिशत पथरी कोलेस्ट्रोल की बनी होती (गॉल ब्लैडर स्टोन) है। धीरे-धीरे वे कठोर हो जाती हैं तथा पित्ताशय (pittashay)के अंदर पत्थर का रूप ले लेती है। कोलेस्ट्रॉल स्टोन पीले-हरे रंग के होते हैं।
जब ब्लैडर में ब्लैक या ब्राउन कलर के स्टोन्स नजर आते हैं तो उन्हें पिगमेंट स्टोन्स कहा जाता है। कई बार गॉल ब्लैडर में अनकॉन्जुगेटेड बिलिरुबिन नामक तत्व का संग्रह होने लगता है तो इससे पिगमेंट स्टोन्स की समस्या होती है। गॉलब्लैडर में गड़बड़ी की वजह से कई बार पित्त बाइल डक्ट में जमा होने लगता है, इससे लोगों को जॉन्डिस भी हो सकता है। अगर आंतों में जाने के बजाय बाइल पैनक्रियाज़ में चला जाए तो इससे क्रॉनिक पैनक्रिएटाइटिस नामक गंभीर समस्या हो सकती है। अगर सही समय पर उपचार (pit ki pathri ka ilaj) न कराया जाए तो इससे गॉलब्लैडर में कैंसर भी हो सकता है।
पित्त में पथरी का बनना एक भयंकर पीड़ादायक रोग है। पित्त में कोलेस्ट्रॉल और पिग्मेंट नामक दो तरह की बनती है। लेकिन लगभग 80 प्रतिशत पथरी कोलेस्ट्रॉल से ही बनती है। पित्त लिवर में बनता है और इसका संग्रह गॉल ब्लैडर में होता है। यह पित्त फैट युक्त भोजन को पचाने में मदद करता है। लेकिन जब पित्त में कोलेस्ट्रॉल और बिलरुबिन की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो पथरी का निर्माण होता है।
गॉल ब्लैडर स्टोन क्यों होता है (Causes of Gall Bladder Stone)
पित्ताशय (pittashay)में पथरी का अभी तक कोई कारण सिद्ध नहीं हुआ है और यह किसी भी उम्र में हो सकता है। कुछ फैक्टर हैं जो गॉलस्टोन्स की संभावना को बढ़ा सकते हैं जैसे कि-
- मधुमेह या डायबिटीज (Diabetes)
- मोटापा (Obesity)
- गर्भधारण (Pregnancy)
- मोटापे की सर्जरी के बाद (Post bariatric surgery)
- कुछ दवाओं का सेवन
- लंबे समय से किसी बीमारी के ग्रस्त होने के कारण
इसके सिवा और भी कारण होते हैं-
ब्रेड, रस्क और अन्य बेकरी उत्पाद: बेकरी में बने उत्पाद जैसे- ब्रेड, मफिन्स, कुकीज, कप केक आदि का सेवन पित्ताशय (pittashay) के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। दरअसल इन फूड्स में सैचुरेटेड और ट्रांस फैट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है और इनमें से ज्यादातर फूड्स मैदे से बने होते हैं। अगर आपको गॉल ब्लैडर से संबंधित कोई रोग है, तो इन उत्पादों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इसकी जगह पर आप मोटे अनाज से बने आहारों का सेवन करें।
ज्यादा प्रोटीन भी है खतरनाक: अगर आपको अपने गॉल ब्लैडर को स्वस्थ रखना है, तो जानवरों में पाये जाने वाले प्रोटीन मात्रा सीमित कर देनी चाहिए। दरअसल जानवरों में पाए जाने वाले प्रोटीन से कैल्शियम स्टोन और यूरिक एसिड स्टोन के होने का खतरा बढ़ जाता है। मछली, मांस में प्रोटीन के साथ कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, इसलिए इनका सेवन बहुत अधिक नहीं करें। अगर आपको गॉल ब्लैडर स्टोन या किडनी में पथरी है, तब तो इनका सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
मीठी चीजों का सेवन: मीठी चीजों में रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट काफी मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ ही चीनी के ज्यादा सेवन से कोलेस्ट्रॉल गाढ़ा होता है, जिससे दिल के रोगों के साथ-साथ गॉल ब्लैडर में पथरी का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए मीठी चीजों का बहुत अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
गर्भनिरोधक दवाएँ : ज्यादा मात्रा में या जल्दी-जल्दी गर्भनिरोधक दवाओं का प्रयोग करने वाली महिलाओं में भी गॉल ब्लैडर की समस्या काफी पाई जाती है। इसलिए महिलाओं को चाहिए कि दवाओं के बजाय अन्य प्रकार के गर्भनिरोधक उपायों को अपनाएं, क्योंकि दवाओं का ज्यादा सेवन उन्हें गॉल ब्लैडर में पथरी का मरीज बना सकता है। इसके अलावा इन दवाओं का किडनी और लीवर पर भी बुरा असर पड़ता है।
कॉफी : अगर आप कॉफी का ज्यादा सेवन करते हैं, तो भी आपको गॉल ब्लैडर की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए जिन लोगों को गॉल ब्लैडर में पहले ही पथरी या अन्य कोई शिकायत है, उन्हें कॉफी का सेवन बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। जो लोग स्वस्थ हैं, वो दिन में एक या दो कॉफी पी सकते हैं मगर इससे ज्यादा कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए।
सोडा का सेवन: पथरी होने पर पानी का अधिक सेवन करने की सलाह दी जाती है, लेकिन कुछ पेय पदार्थ ऐसे भी होते हैं जो पथरी होने पर नहीं पीना चाहिए। स्टोन होने पर सोडा का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए, इसमें फॉस्फोरिक एसिड होता है जो स्टोन के खतरे को बढ़ाता है।
कई बार पित्त की थैली में पथरी बिना किसी लक्षण के होती है और कई बार कुछ लक्षणों को दर्शाते हुए भी होती है। पित्ताशय की पथरी के लक्षण जो कुछ खास नजर में आते हैं वह हैं-
- बदहजमी
- खट्टी डकार
- पेट फुलाना
- एसिडिटी
- पेट में भारीपन
- उल्टी
- पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं।
आईएसकेडी मेडीफिट द्वारा किडनी स्टोन और गॉलब्लेडर स्टोन का प्राचीन आयुर्वेदिक रामवाण इलाज
किडनी स्टोन और गॉलब्लेडर स्टोन का इलाज निचे दी गयी प्राचीन आयुर्वेदिक औषिधियों द्वारा पूरी तरह से किया जा सकता है अगर बताये गए नियमों के अनुसार इनका इस्तेमाल किया जाये तो. यह इलाज अभीतक 100% कारगर साबित हुआ है. आप इसका लाभ उठाइये.
- कुल्थी की दाल
- श्वेत पर्पटी
- गुड़हल के फूल
कुल्थ या कुल्थी की दाल :
प्राचीन आयुर्वेद में किडनी स्टोन और गॉलब्लेडर स्टोन का प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज संभव है इसके लिए आपको इन तीन औषधियों का इस्तेमाल करना होगा.
कुलत्थ या कुल्थी क्या है? (What is Kulattha in Hindi?)
कुलथी प्रकृति से कड़वा, मधुर, तीखा, कफवात को दूर करने वाली, पित्तकारक,, रक्तपित्तकारक, पित्त को बढ़ाने वाली, खून बढ़ाने वाले तथा अम्लपित्तकारक होती है।
इसका प्रयोग सांस संबंधी समस्या, खांसी, हिक्का, पथरी, दाह, पीनस, मोटापा, बुखार, कृमि, पेट फूलना, दिल की बीमारी, सिरदर्द, वस्तिशूल यानि मूत्राशय में दर्द, मूत्राघात, अश्मरी, अर्श, गुल्म, विषप्रभाव, विबन्ध या कब्ज, उदररोग या पेट संबंधी समस्या, अरुचि तथा प्रतिश्याय (Coryza) की चिकित्सा में किया जाता है।
कुलथी का जूस वातानुलोमक होता है। वात संबंधी रोग में कुलथी का प्रयोग फायदेमंद होता है। कुलथी मूत्रल, सूजन को कम करने वाली, बलकारक होती है।
कुलत्थ का औषधीय गुण (Medicinal Properties of Kulattha in Hindi)
कुलथी प्रकृति से कड़वा, कषाय, मधुर, तीखा, कफवात को कम करने वाला, पित्तकारक, संग्राही या कब्ज, विदाही यानि जलन का एहसास, अतिरिक्त पसीना को रोकने वाली, रक्तपित्तकारक, पित्त और रक्त को बढ़ाने वाला और अम्लपित्तकारक होती है।
इसके अलावा कुलत्थ का प्रयोग सांस संबंधी समस्या, खांसी, हिक्का, अश्मरी या पथरी, दाह, पीनस (Rhinitis), मेद रोग या मोटापा, ज्वर, कृमि, आनाह या पेट फूलना, हृदय रोग, सिर दर्द, वस्तिशूल, मूत्राघात, अश्मरी, अर्श, गुल्म,तूनी रोग (Neuralgic pain), विषप्रभाव, विबन्ध या कब्ज, शोफ या अल्सर, उदररोग या पेट संबंधी रोग, अरुचि तथा प्रतिश्याय या साइनस की चिकित्सा में किया जाता है।
कुलथी का जूस वातानुलोमक होता है तथा गुल्म तूनी (Neuralgic pain) व प्रतूनी (Renal pain)आदि वातविकारों का को ठीक करने में मदद करता है।
कुलथी स्तम्भक (Styptic), मूत्रल, हृदय के कार्य को सही तरीके से करने में मददगार, सूजन को कम करने वाली, बलकारक तथा प्रत्यूर्जतारोधी यानि एलर्जी के इलाज में मदद करती है।
पथरी के इलाज में कुल्थी के फायदे (Kulattha Beneficial to Treat Kidney Stone in Hindi)
अगर पथरी के लक्षणों से परेशान और प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज के मदद से निकालना चाहते हैं तो कुलथी की फलियों को पानी में भिगोकर मसल-छानकर पिलाने से पथरी निकल जाती है। इसके अलावा 5-10 ग्राम कुलत्थाद्य घी को मात्रानुसार सेवन करने से अश्मरी, मूत्राघात (Anuria) , मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्रविबन्ध में लाभ होता है।
- थोड़ा सा कुलथी साफ कर लें। इसे एक कटोरे में पानी में डालकर रात भर के लिए रख दें। सुबह उठने के बाद खाली पेटइसी दाल के पानी को पी जाएं। इस तरह कुलथी दाल का पानी (Kulthi Deel ka pani) प्रत्येक दिन एक कप भी तीन से चार महीने पिएंगे, तो आपको लाभ होगा। किडनी से स्टोन बाहर (Kulthi Benefits in Kidney Stone in Hindi) निकल जाएगा।
- पथरी के लिए कुलथी का इस्तेमाल लंबे समय से किया जा रहा है। कुलथी दाल एंटीऑक्सीडेंट और शरीर से गंदगी बाहर निकालने वाले गुणों से समृद्ध होती है, जो किडनी से पथरी को बाहर निकालने में मदद कर सकते हैं। शायद यही वजह है कि इसे किडनी स्टोन के इलाज के लिए पारंपरिक और वैकल्पिक दवा का दर्जा प्राप्त है।
- एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, कुलथी दाल एक कारगर मूत्रवर्धक यानी पेशाब को बढ़ावा देने वाला प्रभाव के रूप में काम करती है, जो पेशाब के रास्ते किडनी स्टोन को निकालने का काम कर सकती है।
श्वेत पर्पटी क्या है (what is white stripe):
आयुर्वेद में पर्पटी प्रकरण की दवाओं का विशेष महत्व है. आन्त्रिक विकार जैसे गृहणी, अतिसार2, पाचन विकार आदि में पर्पटी परिकल्पना से बनी औषधियों का उपयोग किया जाता है. जब आंतो के इन विकारों में अन्य किसी औषधि से लाभ नहीं हो रहा हो तो इन दवाओं का सेवन करने से आशातीत लाभ होते देखा गया है. परन्तु यह लाभ तभी संभव है जब औषधि पूरी तरह से शास्त्रोक्त विधि से एवं सावधानी पूर्वक बनायी गयी है.
पर्पटी का उपयोग विशेषतः उस अवस्था में किया जाता है जब रोग बहुत ही जटिल हो गया हो और अन्य किसी दवा से लाभ न हो रहा हो क्योंकि इस दवा का सेवन एक विशेष नियम से किया जाता है एवं खान पान पर पूरी तरह से नियन्त्रण रखना होता है.
श्वेत पर्पटी में अमोनियम क्लोराइड, पोटाश एलम और पोटेशियम नाइट्रेट के निर्जलित homogenous मिश्रण शामिल हैं। यह डिस्रुरिया, ऑलिगुरीया, पेट का दर्द, मूत्र पथ के संक्रमण, मूत्र पथरी के उपचार में प्रयोग की जाती है। यह गुर्दे की पथरी के गठन को कम करने में मदद करती है। यह मूत्र पथ के संक्रमणों में मदद करती है। और प्रबंधन करती है। यह मूत्र पथ के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है। यह मूत्र में जलन भी कम करती है।
श्वेत पर्पटी के घटक (Ingredients of Shwet Parpati Parpati in Hindi)
- कलमी शोरा – शुद्ध पोटेशियम नाइट्रेट – 16 ग्राम
- फिटकरी – 2 ग्राम
- नौसादर – शुद्ध अमोनियम क्लोराइड – 1 ग्राम
कलमी शोरा क्या है? What is Kalmi Shora?
पोटैशियम नाइट्रेट (Potassium nitrate) एक रासायनिक यौगिक है। इसका अणसूत्र KNO3 है। यह एक आयनिक लवण है। पोटैशियम नाइट्रेट ‘शोरा’ (niter) नामक खनिज के रूप मिलता है और नाइट्रोजन का प्राकृतिक ठोस स्रोत है। स्वाद में नमकीन तथा ठण्डा होता है। यह यूरीन एल्कलाइजर (Urine Alkalizer), मूत्रवर्धक (Diuretic), आल्टरेटिव (Alterative), ज्वरनाशी (Febrifuse), एक्सपैक्टोरेंट (Expectorant) है।
नौसादर – अमोनियम क्लोराइड क्या है? What is Nausadar?
नौसादर, नवसार, नव्यसार, नवसादर, नरसार, नरसादर, आदि अमोनियम क्लोराइड के नाम हैं। इसे पंजाब में कई स्थानों से निकाला जाता है। अशुद्ध नौसादर को जल में घुलाकर, लवणाम्ल मिलाकर, वाष्पस्वेदन यंत्र में डालकर, पानी उड़ा कर क्रिस्टलीय कर शुद्ध नौसादर प्राप्त किया जाता है।
फिटकरी क्या है? What is Alum?
फिटकरी को संस्कृत में स्फटिका, हिंदी में फिटकरी, इंग्लिश में पोटाश एलम कहते है। कांक्षी, तुवरी, स्फटिका, सौराष्ट्री, शुभ्रा, स्फुटिका आदि नामों से जाना जाता है। फिटकरी सफेद, पीले, लाल और कृष्ण की हो सकती है। इसका रासयनिक नाम पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट है तथा इसका केमिकल फार्मूला KAl(SO4)2.12H2O है।
आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए फिटकरी का प्रयोग प्राचीन समय से किया जाता रहा है। चरक संहिता में भी इसके प्रयोग का वर्णन पाया जाता है। रत्न समुच्चय ग्रन्थ में इसे तुवरी कहा गया है। रसतरंगिणी में इसे पित्त-कफ नाशक, ज्वरनाशक, आँखों के रोगों में लाभप्रद, खून के बहने को रोकने वाली, मुख के रोगों, कान रोगों और नाक से खून बहने से रोकने वाली माना गया है।
आईएसकेडी मेडीफिट पर आयुर्वेदाचार्य ब्रह्मस्वरूप सिंह द्वारा किडनी स्टोन और गॉलब्लेडर स्टोन का प्राचीन आयुर्वेदिक रामवाण इलाज
1. श्वेत पर्पटी:
कलमी शोरा – शुद्ध पोटेशियम नाइट्रेट – 16 ग्राम
फिटकरी – 2 ग्राम
नौसादर – शुद्ध अमोनियम क्लोराइड – 1 ग्राम
3. कुलत्थ या कुल्थी – 250 ग्राम
4. गुड़हल के फूल – 250 ग्राम
ऊपर हमने तीन औषिधियों के वारे में आपको विस्तृत जानकारी दी है
सेवन का तरीका:
ऊपर दिए गयी तीनों औषिधियों को दी गयी मात्रा के अनुसार लेकर पीस लें और छानकर किसी कांच की बोतल बंद में रख लें. इसके बाद हर रोज सुबह खली पेट और रात को खाना खाने के बाद 150-250mg के मात्रा में 4 से 6 हफ्ते या जबतक पूरी तरह से स्टोन न निकल जाये तब तक ठंडे पानी के साथ या लस्सी के साथ या कच्चे नारियल के पानी के साथ लें. इस औषधि को लेने के बाद कम से कम डेढ़ से 2 घंटे तक कुछ भी नहीं खाना है.
धयान रहे बताई गयी मात्रा के अनुसार ही लें क्यूंकि इन औषिधियों की प्रॉपर्टीज बहुत तेज होती हैं यार फिर किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर या वैध जी की सलाह की अनुसार ही लें क्यूंकि ज्यादा मात्रा में लेने से इसके नुकसान भी देखे गए हैं.
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