लकवे (Paralysis) या पक्षाघात में शरीर का प्रभावित हिस्सा या पूरा शरीर काम करना बंद कर देता है। वात दोष (Gout) के असंतुलन के कारण शरीर के अंगों के संवेदात्मक (Sensitive) हिस्सो को क्षति पहुंचती है जिसे अर्धांग (Hemiplegy) कहा जाता है। लकवा को लेकर विस्तार में जानकारी दे रहे हैं आयुर्वेदाचार्य ब्रह्मस्वरूप सिंह।
पैरालिसिस रोग : प्राचीन आयुर्वेद में पैरालिसिस का अच्छा इलाज है। प्राचीन आयुर्वेद की कई दिव्य औषधियों एवं पंचकर्म चिकित्सा से इस रोग को ठीक किया जा सकता है। प्राचीन आयुर्वेद के कुछ खास तेलों की मदद से चिकित्सक की सलाह लेकर औषधियों का सेवन किया जाए, तो पैरालिसिस से छुटकारा पाया जा सकता है। अश्वगंधा, मुलेठी, कालीमिर्च, गिलोय और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर पाउडर बना लें और सुबह-शाम शहद के साथ इसका सेवन करें।
पैरालिसिस क्या है? (What is Paralysis?)
पैरालिसिस को सामान्य भाषा में लकवा कहते हैं। वहीं प्राचीन आयुर्वेद पद्धति के अनुसार पैरालिसिस पक्षाघात कहते हैं, जो एक वायु रोग है, जिसके प्रभाव से शारीरिक प्रतिक्रियाएं, बोलने की क्षमता और महसूस करने की क्षमता खत्म होने लगती है। प्राचीन आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से वात दोष बढ़ने या अंसतुलित होने पर शारीरिक अंगों में सेंसेटिविटी कम होने लगती है, जो पैरालिसिस का कारण बन जाता है। ऐसा किसी गंभीर चोट या नसों के कमजोर होने की वजह मुख्य मानी जाती है। इसके लक्षणों को सबसे पहले समझना जरूरी है और फिर पैरालिसिस का प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for Paralysis) कैसे किया जाता है, यह जानेंगे।
साधारण भाषा में कहें तो लकवा होने पर प्रभावित हिस्सा काम करना बंद कर देता है। लकवा शरीर के किसी एक हिस्से या पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। किसी चोट या बीमारी के नसों की सप्लाई को प्रभावित करने के कारण मांसपेशियों के कार्य में बाधा आती है। प्राचीन आयुर्वेद में लकवे को पक्षाघात कहा गया है। वात दोष बढ़ने या असंतुलित होने पर शरीर के एक हिस्से के अंगों के संवेदनात्मक (महसूस करने वाले) और मोटर (मूवमेंट करने वाले) कार्यों को नुकसान पहुंचता है जिसे अर्धांग वात कहा जाता है।
प्राचीन आयुर्वेद में पक्षाघात को नियंत्रित करने के लिए पंचकर्म थेरेपी में से स्नेहन (तेल लगाने की विधि), स्वेदन (पसीना लाने की विधि), बस्ती (एनिमा) और नास्य (नाक में औषधि डालने की विधि) का प्रयोग किया जाता है। पक्षाघात को नियंत्रित एवं इसके इलाज में प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में अश्वगंधा, बला और निर्गुण्डी एवं हर्बल मिश्रण जैसे कि योगराज गुग्गुल तथा दशमूलारिष्ट का इस्तेमाल किया जाता है। पक्षाघात को नियंत्रित करने के लिए तीखे भोजन और धूम्रपान से दूर रह कर एवं आहार में अदरक, अंगूर, मूंग दाल और अनार को शामिल करने से मदद मिल सकती है।
प्राचीन आयुर्वेद के दृष्टिकोण से लकवा – Ancient Ayurveda ke anusar paralysis
पक्षाघात को एक ऐसी बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो वात दोष में असंतुलन के कारण पैदा होती है। जब ये बीमारी किसी एक अंग (हाथ या पैर) को प्रभावित करती है तो इसे एकांग वात कहा जाता है। जब ये बीमारी दोनों हाथों और पैरों को प्रभावित करती है तो इसे सर्वांग वात के नाम से जाना जाता है। वाक्संग (बोलने में दिक्कत) और अर्दित (चेहरे पर लकवा) का संबंध पक्षाघात से हो सकता है।
प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात को लंबे समय तक (3 से 4 महीने) नियंत्रित करने के लिए स्वेदन, स्नेहन, बस्ती, शिरोबस्ती (सिर पर तेल डालना), विरेचन आदि की जरूरत होती है। प्राचीन आयुर्वेद में स्ट्रोक से पहले निम्न लक्षण सामने आते हैं जिनको अगर समय पर पहचान लिया जाए और इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे लकवा का रूप लेने से रोका जा सकता है।
- मद: किसी तरह की दवा या तत्व के सेवन की वजह से उलझन में रहना या बेसुध हो जाना
- मूर्छा: सीवीए (सेरेब्रोवस्कुलरएक्सीडेंट) या स्ट्रोक के कारण बेहोश होना
- सन्यास: किसी चोट या सीवीए के कारण दिमागी रूप से कोमा में जाना
पक्षाघात के कारण शरीर के प्रभावित हिस्से में सुन्नपन और दर्द, मोटर फंक्शन (हाथों, टांगों और शरीर के अन्य बड़े भागों का संचालन और समन्वय) में कमी, बहुत ज्यादा लार निकलना और आंखों से पानी आना, गति से संबंधित विकार (जैसे कि चलने में दिक्कत होना) और बोलने में परेशानी होना (खासतौर पर जब पक्षाघात शरीर के दाएं ओर हुआ हो)।
पक्षाघात के नियंत्रण हेतु आयुर्वेद में स्नेहन (Lubrication), स्वेदन (Diapne), बस्तीकर्म (Enema) एवं नास्यकर्म (Nectar) का उल्लेख किया गया है। पक्षाघात के उपचार में अश्वगंधा (Ashwagandha), निर्गुन्डी (Nirgundi), बला तथा योगिराज गुग्गुल (Yogiraj Guggul) एवं दशमूलारिष्ट (Dashmularishta) का प्रयोग किया जाता है। शराब, तीखा भोजन और धूम्रपान लकवे का मुख्य कारण है अतः इनका त्यागकर भोजन में द्राक्ष (Grapes), दाल (Lentils), अदरक (Ginger), मूंग (Mung Bean) व अनार (Pomegranate) को सम्मिलित करना चाहिए।
पक्षाघात में एक हाथ या पैर प्रभावित होने पर इसे एकांग, पूरे शरीर के प्रभावित होने पर सर्वांग, बोलने में दिक्कत होने पर वक संग तथा चेहरे पर लकवा होने पर इसे अर्दित (Ardit) कहा जाता है। पक्षाघात के लक्षणों में बेसुध (Insensitive) हो जाना, बोलने में दिक्कत आना, हाथ पैरों में कम्पन तथा उनके संचालन (Operations) में असुविधा एवं बेहोशी ओर मुंह से ज़्यादा लार आना होता है।
पैरालिसिस के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Paralysis)
पैरालिसिस के लक्षण आसानी से समझे जा सकते हैं। जैसे:
- अत्यधिक कमजोरी (Weakness) महसूस होना।
- किसी भी शारीरिक हिस्से का सुस्त पड़ना।
- बोलने में कठिनाई होना।
- कोई भी बात या सामने वाले व्यक्ति द्वारा कही गई बातों को ना समझना या समझने में परेशानी होना।
- देखने में तकलीफ होना।
- सिरदर्द (Headache) होना।
- चक्कर आना।
- चलने और दैनिक गतिविधियों में परेशानी होना।
- इन लक्षणों को आसानी से समझा जा सकता है।
पैरालिसिस के कारण क्या हैं? (Cause of Paralysis): लकवा के कई कारण हो सकते हैं। जैसे:
- स्ट्रोक (Stroke) की समस्या।
- अटैक (Attack) आना।
- कान दर्द (Ear pain) होना।
- स्लिप पैरालिसिस (Sleep Paralysis) की समस्या।
- हड्डी, पीठ या सिर में तेज चोट लगना।
- हाइपोकैलेमिया (पोटैशियम की कम मात्रा)।
- मल्टीपल स्क्लेरोसिस की समस्या।
- सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) से जुड़ी समस्या।
- मस्तिष्क (Brain) संबंधी विकार।
- स्पाइनल कॉर्ड (Spinal cord) से जुड़ी परेशानी ।
- शरीर के किसी एक हिस्से जैसे हाथ या पैर या कभी दोनों में कमजोरी महसूस होना।
- पोलियो का इंफेक्शन।
- ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune disease) की समस्या रहना।
- जन्म से ही मांसपेशियों का कमजोर होना।
- डर्माटोमोसिटिस (Dermatomyositis) की समस्या होना।
- स्टैटिन या स्टेरॉयड जैसी दवाओं का सेवन करना।
- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular dystrophy) यानी मांसपेशियों से जुड़ी तकलीफ रहना।
ये सभी पैरालिसिस के कारण बन सकते हैं, लेकिन पैरालिसिस का प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for Paralysis) कारगर माना जाता है, जिससे पैरालिसिस पीड़ित एक बार फिर से अपने रेग्यूलर लाइफ रुटीन में वापस लौट सकता है।
पैरालिसिस का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार – Lakwa ka ayurvedic upchar
प्राचीन आयुर्वेद में पक्षाघात (Paralysis) के उपचार हेतु-
स्नेहन (Lubrication),
स्वेदन (Diapne),
नास्यकर्म (Nectar),
बस्तीकर्म (Enema),
विरेचन (Purgation) आदि विधियों का उल्लेख किया गया है।
स्नेहन (Lubrication): में ओषधीय तेलों का लेप प्रभावित हिस्से या पूरे शरीर पर किया जाता है।
- इस चिकित्सा में 3 से 7 दिन के लिए गाढ़े औषधीय तेल को शरीर पर लगाया जाता है।
- सामान्य उपचार के
- तौर पर एवं लकवे को लंबे समय के लिए नियंत्रित करने के लिए बाहरी और आंतरिक रूप से स्नेहन की सलाह दी जाती है।लकवा से ग्रस्त मरीज के लिए स्नेहन चिकित्सा में महानारायण तेल, दशमूल तेल और महामाष तेल जैसे कुछ औषधीय तेलों का इस्तेमाल किया जाता है।
- पक्षाघात के लिए शमन और शोधन, दोनों में ही स्नेहन का प्रयोग किया जाता है।
- आमतौर पर स्नेहन के साथ स्नेहपान (तेल या घी पीना) की सलाह दी जाती है। अभ्यंग प्रक्रिया से स्नेहन करने से स्नेहन चिकित्सा का प्रभाव बढ़ जाता है।
स्वेदन (Diapne): में गर्म तेल या मिट्टी के प्रभाव से पीड़ित व्यक्ति को पसीना दिलाया जाता है।
- लंबे समय तक पक्षाघात को नियंत्रित करने एवं सामान्य उपचार के तौर पर स्वेदन की सलाह दी जाती है। इसे शोधन थेरेपी के एक हिस्से के रूप में भी दिया जा सकता है। विरेचन से पहले स्वेदन और स्नेहन किया जाता है जिसमें खासतौर पर लकवा से ग्रस्त व्यक्ति को उपनाह स्वेदन (प्रभावित हिस्से पर गर्म औषधि का प्लास्टर लगाना)
- अगर किसी व्यक्ति को कफ के साथ वात में असंतुलन के कारण लकवा हुआ हो और उसमें अकड़न, चुभने वाला दर्द, दौरे, सूजन और त्वचा पर चुभन या ठंड लगने जैसे लक्षण महसूस हो रहे हों तो इस स्थिति में तप (सिकाई), द्रव (तरल), ऊष्म (भाप) और उपनाह स्वेद दिया जाता है।
बस्तीकर्म (Enema): एक प्रकार की एनिमा विधि है जिससे शरीर से विषाक्त पदार्थों (Toxins) को बाहर निकाला जाता है।
- बस्ती कर्म, वात के बढ़ने या असंतुलन के कारण हुई बीमारियों के इलाज में उपयोगी है। ये आंत को पूरी तरह से साफ करता है। इस चिकित्सा में शरीर से मल के जरिए अमा (विषाक्त पदार्थों) को बाहर निकाला जाता है। इसके बाद आंत ठीक तरह से काम कर पाती है।
- सभी प्रकार के पक्षाघात के लिए उचित समय पर निरूह बस्ती (औषधीय काढ़े का एनिमा) देना लाभकारी होता है। अरंडीमूल बस्ती (अरंडी की जड़ और अन्य जड़ी बूटियों से बस्ती), मधुतेलिका (शहद, तिल के तेल, गुनगुने पानी, सोआ का पौधा और अन्य सामग्रियों से बस्ती), सिद्ध बस्ती और राजयापन बस्ती (शहद, दूध, घी और अन्य पौष्टिक पदार्थों से बस्ती) का इस्तेमाल निरूह बस्ती में किया जाता है। निरूह बस्ती में शोधन थेरेपी शामिल होती है और लकवा की स्थिति एवं मरीज की जीवनशैली के आधार पर इसकी सलाह दी जाती है।
- पक्षाघात को लंबे समय तक नियंत्रित करने के लिए मूर्धा तेल (सिर पर तेल लगाना) से शिरोबस्ती किया जाता है। शिरोबस्ती चिकित्सा के जरिए विभिन्न औषधियों को काढ़े, तेल, दूध, छाछ या पानी के रूप में दिया जाता है।
नास्यकर्म (Nectar): में नाक के ज़रिये ओषधीय तेल या अर्क डाला जाता है।
- नास्य कर्म के अंतर्गत नाक में तेल या अर्क (चुनी गई औषधि की पत्तियों का रस) डाला जाता है। अगर किसी व्यक्ति को हाल ही में लकवा हुआ है तो उसके लिए नास्य थेरेपी उपयोगी है। नास्य कर्म में वात प्रधान चरण जैसे कि अर्दित, लकवा, मूर्छा और मद के इलाज में धनवंतहरम और शंदबिंधु तेल अहम भूमिका निभाते हैं।
- प्रधमन नास्य एक शोधन चिकित्सा है जिसमें कफ के कारण हुए लकवे के इलाज के लिए वच और कटफल के चूर्ण का इस्तेमाल किया जाता है। ये बेसुध व्यक्ति, दिमाग में घाव या दिमागी रूप से कोमा में जा चुके व्यक्ति के लिए लाभकारी है।
- मृदु विरेचन
लकवे के प्रमुख उपचार के तौर पर विरेचन की सलाह दी जाती है और इसमें विशेष रूप से शोधन थेरेपी शामिल होती है।
लकवे को नियंत्रित करने के लिए स्निग्ध विरेचन में सादे या संसाधित अरंडी के तेल को अकेले या दूध के साथ दिया जाता है जिसके बाद व्यक्ति को दस्त आते हैं। मिश्रण स्नेह (घी में मिली जड़ी बूटियां) भी विरेचन कर्म में उपयोगी है। संसर्जन कर्म (7 दिन तक संतुलित आहार) के साथ ही विरेचन करना चाहिए। - वात प्रकृति के व्यक्ति खासतौर पर जो कब्ज से ग्रस्त होए उन्हें अरंडी के तेल, एरंड भ्रष्ट हरीतकी, सेन्ना और हृदय विरेचन (विरेचन के लिए हृदय को मजबूती देने वाली जड़ी बूटियों का इस्तेमाल) से दस्त लाए जाते हैं।
पक्षाघात की आयुर्वेदिक दवा और जड़ी बूटियां – Paralysis ki ayurvedic dawa aur aushadhi
लकवा के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- अश्वगंधा
- अश्वगंधा इम्युनिटी बढ़ाने वाली जड़ी बूटी है जो कि ऊतकों को ठीक करती है और मांसपेशियों की मजबूती कम होने, ऊर्जा में कमी, थकान, सूजन, त्वचा रोगों और लकवा के इला ज में मदद करती है।
- इसमें न्यूरोजेनरेटिव (न्यूरोन्स को ठीक करने वाले), तनाव-रोधी, मांसपेशियां बनाने और पोषण प्रदान करने के गुण होते हैं।
- अश्वगंधा विभिन्न रूप में उपलब्ध है जैसे कि काढ़ा और पाउडर जिसे तेल या घी में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। आप अश्वगंधा चूर्ण गर्म पानी, दूध या शहद के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- आयुर्वेदि में अश्वगंधा कई बीमारियों के इलाज में कारगर माना जाता है। अश्वगंधा के जड़ों और बीजों का भी सेवन किया जाता है। अश्वगंधा में मौजूद एन्टीस्ट्रेस (Antistress), एंटी ट्यूमर (Antitumor), एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-inflammatory) एवं एंटीअर्थरिटिक (Antiarthritic) गुण पैरालिसिस पेशेंट्स के लिए बेहद लाभकारी माने जाते हैं। पैरालिसिस के अलावा अश्वगंधा पुरुषों में होने वाली यौन दुर्बलता (Sexual debility), सेक्स की इच्छा कम होना (Low sex drive), वीर्य में कमी आना (Loss of semen) या शीघ्रपतन (Premature ejaculation) जैसी समस्याओं को दूर करने में भी विशेष लाभकारी माना जाता है।
- बला
- बला शरीर और ह्रदय को मजबूती प्रदान करती ह। ये मांसपेशियों और ऊतकों को ताकत देती है। इसलिए ये लकवा से ग्रस्त व्यक्ति की कमजोरी दूर कर उसे शक्ति देने का काम करती है। ये विशेष तौर पर शरीर को बल (मजबूती) देने और नसों की नई कोशिकाओं का निर्माण करने में मदद करती है।
- बला नसों में दर्द, सुन्नपन, जोड़ों से संबंधित बीमारियां, घाव, ट्यूमर, मांसपेशियों में ऐंठन और अल्सर से भी राहत दिलाती है।
- बला औषधीय तेल, काढ़े और पाउडर के रूप में उपलब्ध है। आप बला के चूर्ण को तेल, गर्म पानी या शहद के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी की लिस्ट में शामिल है बला को खिरैटी के नाम से भी जाना जाता है। इस जड़ी-बूटी में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant) गुण पैरालिसिस के मरीजों के लिए अत्यधिक फायदेमंद होता है। बला पैरालिसिस के अलावा बांझपन (Infertility) एवं शारीरिक दुर्बलता (Physical weakness) को दूर करने में भी सहायक माना जाता है।
- निर्गुण्डी
- निर्गुण्डी जोड़ों और मांसपेशियों में सूजन एवं जलन, अल्सर को कम करने में मदद करती है और हाथ या पैरों में मोच एवं सिरदर्द से राहत दिलाती है।
- लकवा से ग्रस्त व्यक्ति पर निर्गुण्डी तेल लगाने की सलाह दी जाती है।
- निर्गुण्डी का फल खासतौर पर पाउडर के रूप में उपलब्ध है जिसका पेस्ट या काढ़े के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। निर्गुण्डी पाउडर को शहद या चीनी के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी की लिस्ट में तीसरे नबंर पर शामिल है निर्गुन्डी। पैरालिसिस का आयुर्वेदिक इलाज निर्गुन्डी की मदद से भी किया जाता है। यह एक तरह का फल होता है, जिसमें एक नहीं, बल्कि कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इस फल के पाउडर (चूर्ण) का सेवन किया जाता है और साथ ही लकवा के पेशेंट को इसके तेल (Oil) से मालिश (Massage) भी किया जाता है।
- शुंथि
- शुंथि यानी सोंठ में कई औषधीय गुण होते हैं। ये अपच, जी मितली, उल्टी, गले में खराश और दस्त के इलाज में मदद करती है। ये कई स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि ऐंठन, अस्थमा, आर्थराइटिस और मूत्र असंयमिता से राहत दिलाती है।
- ये मूर्छा, बेसुध होने और बेहोशी में बोलने की समस्या को भी दूर करती है। इसलिए लकवा से ग्रस्त व्यक्ति को होश में लाने के लिए शुंथि उपयोगी है।
- शुंथि को अर्क, पेस्ट, ताजे रस, पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं। आप शुंथि चूर्ण को दूध, गर्म पानी या शहद के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- रसना
- रसना में पौधों में पाए जाने वाले घटक जैसे कि लैक्टोंस, फ्लेवोनोइड्सऔर स्टेरोल्स मौजूद हैं जिनमें सूजन-रोधी, नरम मांसेपशियों को आराम देने और ऐंठन दूर करने वाले एवं ऊर्जादायक गुण हैं। इस वजह से रसना लकवा जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोगी है।
- वात हर (वात नष्ट करने वाले) गुण के कारण रसना प्रमुख तौर पर लकवा के इलाज में उपयोगी है।
- आप रसना के चूर्ण को दूध, गर्म पानी या शहद के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- रसोनम
- रसोनम डिटॉक्सिफाइंग (अमा को साफ करने वाली) जड़ी बूटी के रूप में काम करती है और अस्थमा, नपुंसकता, त्वचा रोगों, कोलेस्ट्रोल, दौरे पड़ने एवं अपच की समस्या से राहत दिलाती है। इसमें कई जैविक घटक मौजूद हैं तो लंबे समय से चल रही बीमारियों जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, लकवा और हृदय से संबंधित अन्य स्थितियों के इलाज में मदद करते हैं।
- आप एक बार रसोनम पिंड चूर्ण को तिल के तेल के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं। लकवा से ग्रस्त व्यक्ति को खाली पेट रसोनम कषाय (लहसुन और अन्य जड़ी बूटियों से बना काढ़ा) लेने की सलाह दी जाती है।
- इन जड़ी-बूटियों के सेवन से पैरालिसिस का प्राचीन आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for paralysis) किया जाता है। इसके अलावा पेशेंट की स्थिति को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेदिक दवाएं भी आयुर्वेदिक डॉक्टर प्रिस्क्रिब करते हैं। इन जड़ी-बूटियों का सेवन कैसे और कब करना चाहिए ये भी आपको आयुर्वेदिक डॉक्टर सलाह देते हैं।
लकवा के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- दशमूलारिष्ट
- दशमूलारिष्ट एक ऐसा मिश्रण है जिसे 10 जड़ी बूटियों की जड़ से बनाया गया है और इसमें पिप्पली, छवल, हल्दी, रसना, जटामांसी और मुस्ता शामिल है।
- दशमूलारिष्ट इम्युनिटी को बढ़ाता है और इसमें दोष में परिवर्तन का विरोध करने की क्षमता है। इसलिए लकवा से ग्रस्त व्यक्ति को ताकत और जोश देने के लिए दशमूलारिष्ट दिया जाता है।
- दशमूलारिष्ट काढ़े के रूप में भी उपलब्ध है जिसे डॉक्टर के निर्देशानुसार खाली पेट लेने की सलाह दी जाती है।
- महारसनादि क्वाथ
- ये औषधि प्रमुख तौर पर वात प्रधान रोगों एवं स्थितियों का इलाज करती है। ये वात प्रकृति वाले पतले व्यक्ति के इलाज में मदद करता है। चूंकि, लकवा एक वात प्रधान स्थिति है इसलिए महारसनादि क्वाथ इससे राहत दिलाने में मददगार साबित होता है।
- इस हर्बल मिश्रण के स्रोतोशोधन गुण भी होते हैं जो कि शरीर की विभिन्न नाडियों से अमा और अशुद्धियों को साफ करते हैं।
- आप डॉक्टर के बताए अनुससार खाली पेट महारसनादि क्वाथ ले सकते हैं।
- योगराज गुग्गुल
- योगराज गुग्गुल, पिप्पली, चित्रक, गुग्गुल, त्वक (दालचीनी), आमलकी, विभीतकी, शुंथि और अन्य जड़ी बूटियों का मिश्रण है।
- आप गर्म पानी या काढ़े के साथ योगराज गुग्गुल की गोली या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं। योगराज गुग्गुल में वातहर गुण होते हैं और इसी वजह से यह लकवा में असरकारी है।
व्यक्ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार लकवा होने पर क्या करें और क्या न करें – Ayurved ke anusar lakwa me kya kare kya na kare
क्या करें
- अपने दैनिक आहार में अदरक, लहसुन, मूली, काले चने, मूंग दाल, प्याज और पेठा शामिल करें।
- आम, अनार और अंगूर खाएं
- धूम्रपान से दूर रहें
क्या न करें
- तीखी, नमकीन और कसैली चीजें न खाएं
- पनीर, चीज़, मक्खन और दूध से बनी एवं तली हुई चीजें तथा शुगरयुक्त ड्रिंक्स का सेवन न करें
- चने, जौ और मटर न खाएं
- बहुत ज्यादा एक्सरसाइज न करें और ज्यादा देर तक भूखे भी न रहें
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल त्याग एवं पेशाब को रोके नहीं (और पढ़ें – पेशाब रोकने के नुकसान)
- शराब न पीएं
- ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है
- गर्मी से एक दम ठंडे तापमान में जाने से बचें
- चिंता, डर और क्रोध से दूर रहें (और पढ़ें – गुस्सा कैसे कम करें)
पैरालिसिस की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है – Paralysis ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
पक्षाघात के इलाज में स्नेहपान के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में यह बात साबित हो चुकी है कि पक्षाघात से ग्रस्त व्यक्ति को धीरे-धीरे रिकवर करने में स्नेहपान असरकारी है और इसके कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं देखे गए।
लकवा से ग्रस्त मरीजों पर शिरोबस्ती के प्रभाव को जानने के लिए किए गए एक अन्य अध्ययन में भी लक्षणों में महत्वपूर्ण सुधार देखे गए।
अन्य अध्ययन में लकवा के मरीज में पंचकर्म के प्रभाव की जांच की गई थी और इसमें पाया गया कि पंचकर्म थेरेपी से लकवा के मरीज को पूरी तरह से ठीक करने की संभावना बहुत कम (लगभग 1 फीसदी) है लेकिन इसे लकवा के मरीज की चिकित्सकीय स्थिति और रिकवरी में सुधार लाने में असरकारी पाया गया।
लकवा की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान – Lakwa ki ayurvedic dawa ke side effects
अगर सही खुराक और मात्रा एवं अनुभवी चिकित्सक की देखरेख में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों को लेने से कोई हानिकारक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है। हालांकि, व्यक्ति की प्रकृति और बीमारी की स्थिति के आधार पर कुछ लोगों को इन दवाओं के गंभीर दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं और चिकित्सा के निम्न हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं:
- असंतुलित पित्त दोष से ग्रस्त व्यक्ति को स्वेदन की सलाह नहीं दी जाती है।
- पेट में अल्सर या गैस्ट्रिक अल्सर, इस्केमिक हृदय रोग, पेट दर्द, अल्सरेटिव कोलाइटिस या शारीरिक कमजोरी की स्थिति में विरेचन नहीं करना चाहिए।
- अगर किसी व्यक्ति के सिर से ब्लीडिंग होने की आशंका है तो उसे प्रधमन नस्य नहीं देना चाहिए।
- नाक या छाती में कफ जमने पर अश्वगंधा नहीं देना चाहिए। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति रोज 28 ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा ले सकता है।
- शुंथि पित्त दोष को बढ़ा सकती है और इसकी वजह से अल्सर, त्वचा पर जलन, बुखार एवं पित्त से संबंधित रोग हो सकते हैं।
- अगर किसी व्यक्ति को कफ जमने की समस्या है तो उसे बला नहीं लेना चाहिए।
पक्षाघात के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव – Pakshaghat ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
पक्षाघात के आयुर्वेदिक इलाज में बस्ती, विरेचन, स्नेहन और स्वेदन के साथ जड़ी बूटियों और औषधियों से लकवा का इलाज और नियंत्रित करने में मदद मिलती है साथ ही ये शरीर को मजबूती देते हैं और शरीर से अमा को निकालकर वात दोष को संतुलित करते हैं।
जड़ी बूटियां और औषधियां कमजोरी को दूर कर व्यक्ति की संपूर्ण सेहत में सुधार लाते हैं जिससे पक्षाघात को लंबे समय तक नियंत्रित करने में मदद मिलती है और जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार आता है।
Maharasnadi Kwath Kadha की जानकारी
Dabur Maharasnadi Kwath Kadha बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः फाइलेरिया, गठिया, लकवा के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा Maharasnadi Kwath Kadha का उपयोग कुछ दूसरी समस्याओं के लिए भी किया जा सकता है। इनके बारे में नीचे विस्तार से जानकारी दी गयी है। Maharasnadi Kwath Kadha के मुख्य घटक हैं गोखरू, अश्वगंधा, सौंफ, अतीस, बच्छनाभ जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है। Maharasnadi Kwath Kadha की उचित खुराक मरीज की उम्र, लिंग और उसके स्वास्थ्य संबंधी पिछली समस्याओं पर निर्भर करती है। यह जानकारी विस्तार से खुराक वाले भाग में दी गई है।
Maharasnadi Kwath Kadha की सामग्री -Maharasnadi Kwath Kadha Active Ingredients in Hindi
गोखरू |
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अश्वगंधा |
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सौंफ |
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अतीस |
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वत्सनाभ |
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Maharasnadi Kwath Kadha की खुराक – Maharasnadi Kwath Kadha Dosage in Hindi
यह अधिकतर मामलों में दी जाने वाली Maharasnadi Kwath Kadha की खुराक है। कृपया याद रखें कि हर रोगी और उनका मामला अलग हो सकता है। इसलिए रोग, दवाई देने के तरीके, रोगी की आयु, रोगी का चिकित्सा इतिहास और अन्य कारकों के आधार पर Maharasnadi Kwath Kadha की खुराक अलग हो सकती है।
आयु वर्ग |
खुराक |
व्यस्क |
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बुजुर्ग |
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लकवा को लेकर अधिकतक पूंछे जाने वाले सवाल : Most frequently asked questions about Paralysis
क्या आयुर्वेद से लकवा ठीक हो सकता है?
आयुर्वेद में पक्षाघात का इलाज पंचकर्म द्वारा किया जा सकता है जो प्राचीन आयुर्वेद के महत्वपूर्ण उपचार विधियों में से एक है।
लकवा की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?
स्ट्रोक यानी लकवा एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज का मुंह तिरछा हो जाता है, हाथ बेजान हो जाते हैं।
लकवा कौन से विटामिन की कमी से होता है?
प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार ऐसा तब होता है जब शरीर में विटामिन बी-12 और बी कॉम्प्लेक्स की कमी हो जाती है। यह पूरी तरह से जीवनशैली में आए बदलाव का साइड इफेक्ट है। फिलहाल खान-पान में बदलाव इसका कारण माना जा रहा हैं।
लकवा में कौन सा तेल लगाया जाता है?
तिल का तेल : तिल का तेल स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। यह मधुर, सूक्ष्म, कसैला, कामशक्ति बढ़ाने वाला होता है। इसके तेल में हींग और सौंठ मिलाकर गर्म करके शरीर पर मालिश करने से कमर, जोड़ों का दर्द, लकवा रोग मिट जाता है। यह खाने से ज्यादा मालिश में गुणकारी होता है।
डाइट में फल, सब्जियों और मिल्क उत्पाद का सेवन करें। कई फल जैसे केला, एप्रिकोट, संतरा, सेब का सेवन करें। सब्जियों में आलू, शकरकंद, स्पीनेच, टमाटर में पोटैशियम भरपूर मात्रा में होता है उसका सेवन करें।
पैरालिटिक दवा एक न्यूरोमस्कुलर ब्लॉकिंग एजेंट है, एक शक्तिशाली मांसपेशी रिलैक्सेंट है जिसका उपयोग सर्जिकल प्रक्रियाओं या महत्वपूर्ण देखभाल के दौरान मांसपेशियों की गति को रोकने के लिए किया जाता है। सामान्य पक्षाघात में एट्राक्यूरियम, सिसाट्राक्यूरियम, मिवाक्यूरियम, रोकुरोनियम, स्यूसिनिलकोलाइन और वेकुरोनियम शामिल हैं।
प्राचीन आयुर्वेअचार्य ब्रह्मस्वरूप सिंह : https://iskdmedifit.com/contact/
पैरालिसिस अटैक काफी गंभीर होता है। इसमें समय से इलाज नहीं होने पर अपंगता की संभावना बढ़ जाती है। एम्स में इसके लिए स्ट्रोक क्लीनिक खोलने की तैयारी है।
पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियों के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ होने की स्थिति को कहते हैं।
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