कालीजीरी, सेंट्राथरम ऐनथेलमिंटिकम या वरनोनिया ऐनथेलमिंटिकम के बीज होते हैं। यह एस्टेरेसिया परिवार का सदस्य है। यह जीरे से बिलकुल अलग है। इसे दवाई की तरह से इस्तेमाल करते हैं लेकिन इसका प्रयोग मसाले की तरह से नहीं किया जाता है. काली जीरी भृंगराज कुल की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। आयुर्वेद में काली जीरी का दूसरा नाम अरण्यजीरक हैं।
कालीजीरी को खून साफ़ करने और चमड़ी के रोगों में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इसे लेने से खुजली और जलन कम होती है। इसका उपयोग भारत के रायलसीमा में मधुमेह के लिए लोक चिकित्सा और आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक लोकप्रिय घटक के रूप में व्यापक रूप से किया जाता है। अन्य स्थानों पर, इसे पारंपरिक रूप से एंथेलमिंटिक, पाचन, मूत्रवर्धक, टॉनिक, एंटी-फ्लेग्मैटिक, एंटी-अस्थमेटिक, खांसी, दस्त, त्वचा के लिए चिकित्सकीय एजेंट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
कालीजीरी के फार्माकोलॉजिकल प्रभाव में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-डाइबेटिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-कैंसर, एंथेलमिंटिक, एंटी-सूजन गुण शामिल हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के द्वारा पौधे के विभिन्न हिस्सों से फैटी एसिड, स्टेरोल, सेस्क्वाइटरपेन लैक्टोन, फ्लैवोनोइड्स और कार्बोहाइड्रेट युक्त 120 से अधिक यौगिकों की पहचान की गई है।
कालीजीरी को आँतों के कृमि जैसे राउंड वर्म, टेपवर्म, थ्रेड वर्म को नष्ट करने, पाचन ठीक करना, अल्सर, ल्यूकोडरर्मा, बुखार और वज़न कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वज़न कम करने के लिए इसे अजवाइन और मेथी के साथ लिया जाता है। आईएसकेडी मेडीफिट, आयुर्वेदाचार्य ब्रह्मस्वरुप सिंह
कालीजीरी की रासायनिक संरचना : कालीजीरी में जैव सक्रिय यौगिकों को जानने के लिए किए गए अध्ययनों ने इसमें 120 से अधिक यौगिकों की पहचान की है, जिसमें फैटी एसिड , स्टेरोल, सेस्क्वाइटरपेन लैक्टोन, कार्बोहाइड्रेट और फ्लैवोनोइड्स आदि प्रमुख हैं।
- उपक्षार-वेर्नोंइने
- स्टीरोल-2 वी ए मिथाइल वेर्नोस्टेरोल
- स्टिग्मास्टेरोल
- लिनोलेनिक
- मोनोहाइड्रोक्सी-ओलेइक एसिड
- म्यरिस्टिक अम्ल
- ओलेक एसिड
- पामिटिक एसिड
- स्टीयरिक अम्ल
- वेर्नोलिक एसिड
- रेजिन
- ब्यूटिन (7,3,4-त्रिह्ड्रोक्साइडहाइड्रोफ्लोन)
कालीजीरी के औषधीय गुण : कालीजीरी को दवा की तरह से इस्तेमाल करते हैं। ऐसा इसमें मौजूद निम्न औषधीय गुणों से है:
- एंटीअल्सर
- कृमिनाशक
- जीवाणुरोधी
- ब्लड शुगर कम करना
- भूख बढ़ानेवाला
- मूत्रवर्धक
- रक्त शोधक
- रोगाणुरोधी
- विरेचक
कालीजीरी के फायदे Health Benefits of Kali Jeeri
कालीजीरी को चमड़ी के रोगों जैसे की प्रुरिटस (खुजली), एक्जिमा, सोरायसिस, आदि में लेने से फायदा होता है क्योंकि यह कृमिघ्न है और खून साफ़ करती है। कालीजीरी मोटापा कम करने के लिए भी जानी जाती है। इसे लेने से ब्लड शुगर कम होता है। इसे बाहरी और मौखिक्क दोनों ही तरीकों से लेते हैं।
कालीजीरी का चमड़ी के रोग में प्रयोग : कालीजीरी को चमड़ी के रोगों में लेने से फायदा होता है। चमड़ी पर सफ़ेद दाग में इसे त्वचा पर अन्य द्रव्यों में मिलाकर लगाते हैं।
- कालीजीरी 50 ग्राम
- त्रिफला 150 ग्राम
- हरताल भस्म 20 ग्राम
- और गौ मूत्र
सभी को गौ मूत्र में मिलाकर पेस्ट बनाकर प्रभावित जगह पर लगाने से लाभ हो सकता है। ऐसा 1 से 3 महीने के लिए प्रतिदिन दो बार किया जाना चाहिए।
खुजली में लाभदायक : खुजली होती है तो कालीजीरी आधा ग्राम को काली मिर्च एक रत्ती, कुटकी आधा ग्राम, हल्दी एक ग्राम, अजवाइन दोग्राम और गुड दो ग्राम को भोजन के बाद प्रतिदिन दो बार लिया जाता है। इससे खून साफ़ होता है, कृमि नष्ट होते हैं, कफ कम होता है और एलर्जी और खुजली में राहत होती है।
एक्जिमा के लिए फायदे : एक्जिमा में कालीजीरी को रोजाना 500 मिलीग्राम की खुराक में लिया जाता तथा इसका पेस्ट प्रभावित त्वचा पर लगाते है।
कालीजीरी करे शुगर कंट्रोल : मधुमेह मेलिटस एक चयापचय विकार है जिसमें रक्त में उच्च ग्लूकोज होता है। इसे दो प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: टाइप 1 (लैंगरहंस के आइसलेट के बीटा कोशिकाओं के विनाश के कारण, इंसुलिन की कमी के परिणामस्वरूप) और टाइप 2 (इंसुलिन स्राव या क्रिया में विकार के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप मुख्य रूप से इंसुलिन प्रतिरोध होता है )। कालीजीरी के एंटी-हाइपरग्लेसेमिक प्रभाव से यह डायबिटीज में लाभकारी है।
कालीजीरी पैनक्रियास से इंसुलिन स्राव बढ़ाती है जिससे यह टाइप 2 मधुमेह मेलिटस में हाइपरग्लेसेमिया को कम कर सकती है। इसे मेथी के बीजों के साथ लेने से डायबिटीज में फायदा होता है।
कालीजीरी और मेथी तभी काम करती हैं जब सुगर का लेवल बहुत अधिक नहीं होता। अगर ग्लूकोज का स्तर 180 मिलीग्राम / डीएल से अधिक है, तो यह अकेले काम नहीं करती।
कालीजीरी करे मोटापा कम : कालीजीरी से वज़न कम होता है। वज़न या मोटापा कम करने के लिए काली जीरी का प्रयोग कैसे करें।वज़न कम करना चाहते हैं, तो कालीजीरी का पाउडर 1 हिस्सा को मेथीबीज पाउडर 4 हिस्सा और अजवाइन पाउडर 2 हिस्सा के साथ मिला लें। इस पाउडर को एक चाय के चम्मच की मात्रा में भोजन के बाद गर्म पानी के साथ लेना चाहिए।
कालीजीरी कृमि रोगों में लाभप्रद : कालीजीरी आंतों के कीड़े और परजीवी उपद्रव को दूर करने में लाभप्रद है। भारत में पारंपरिक चिकित्सकों ने सेंट्रैथम एंथेलमिंटिकम के बीजों को परजीवी आंतों के कीड़े को निकालने में सक्षम दवा के रूप में उपयोग किया और छोटे बच्चों और वयस्कों में परजीवियों को कम करने में सफल परिणाम दिखाए हैं ।
कालीजीरी पाउडर को आधा ग्राम की मात्रा में विडंग पाउडर एक ग्राम और गुड तीन ग्राम के साथ मिलाकर एक पावडर बना कर रख लेना चाहिए। इसे गर्म पानी के साथ दिन में दो बार भोजन के बाद लेना चाहिए।
फाइलेरिया में कालीजीरी : लिम्फैटिक फिलीरियासिस जिसे आमतौर पर हाथी पाँव के रूप में जाना जाता है, एक उष्णकटिबंधीय बीमारी है जो नेमाटोड परजीवी ब्रुगिया माली , ब्रुगिया टिमोरी और वुचेरिया बैंक्रॉफ्टी के कारण होती है । हाल के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 72 देशों में 1।3 अरब से अधिक लोग, ज्यादातर दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसका उच्च जोखिम है ।
कालीजीरी के बीज की antifilarial गतिविधि अध्ययन के द्वारा पता चलती है।
कालीजीरी की डोज़
- कालीजीरी को वयस्क रोजाना दो बार 500 से 2 ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं। ज्यादा लेने से उल्टियां हो सकती है।
- स्तनपान कराने के दौरान इसे चौथाई से लेकर आधा ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार ले सकते हैं।
- एक दिन में इसे तीन की मात्रा से ज्यादा नहीं लेना चाहिए।
कालीजीरी और उल्टी : कालीजीरी गैर-विषाक्त है, लेकिन इससे मतली या उल्टी हो सकती है। अगर उलटी होती है तो इसकी कम मात्रा लेनी चाहिए।
कालीजीरी के साइड इफेक्ट्स
- उल्टी
- चक्कर आना
- दस्त
- पेट की ऐंठन
- मतली
कुछ लोगों को इससे एलर्जी हो सकती है। एलर्जी के लक्षण निम्न हो सकते हैं:
- जीभ में सूजन
- त्वचा पर चकत्ते
- पेट में दर्द
- मुंह का झुकाव
- होंठ के चारों ओर लाली
गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान प्रयोग
- गर्भावस्था में इसे नहीं लेना चाहिए।
- स्तनपान में इसे कम मात्रा में ले सकते हैं।
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